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स्कूल की ओ लडकी भाग तीन मित्रता

भाग तीन

मित्रता

जैसा कि आपने पढ़ा था कि बच्चे अरुण को देख रहे थे अब आगे-----
मानव जीवन में बहुत सारे रिश्ते नाते होते हैं किंतु कुछ बहुत ही अहम और खास रिश्ते होते हैं जिन्हें मनुष्य बहुत सोच समझकर बनाता है उसी में प्रथम और मुख्य है मित्रता मित्रता एक ऐसी रस्सी है जो हमें कठिन से कठिन दलदल से भी बाहर खींच लेती है मित्रता सुखद आनन्ददायक और उपयोगी के साथ-साथ हितकारी भी है किंतु यदि मित्र अच्छे हों तब तो ठीक है नहीं तो यही मित्रता आपके विनाश का कारण भी बन सकती है ।
जीवन के जिस भी क्षण में आपको अकेला पन महसूस होता है तो सबसे पहले आपके अपने मित्र की ही याद आती है मित्र आपका कितना भी परिहास क्यों न उडाये पर हम उन्हें भूलते नहीं यही सच्ची मित्रता कि पहचान होती है पर मित्रता सभी से नहीं करनी चाहिए शास्त्रों में कहा गया है कि-----
कटु क्वणन्तो मलदायका: खलास्तुदन्त्यलं बन्धनशृंखला इव
  अर्थात कवि बाण भट्ट कहते हैं जो दुष्ट व्यक्ति होते हैं ओ जब बोलते हैं तो ऐसा लगता है मानों लोहे की वेडियां आपस में लड़ रही हों और अश्रवणीय ध्वनि करती है ये लोग हमेशा गंदा ही बोलते हैं ये दुष्टता के प्रतिमूर्ति तो होते ही हैं और अपकार करने में सदैव तत्पर रहते हैं ऐसे लोगों से न तो मित्रता करनी चाहिए न सहायता लेनी चाहिए क्योंकि ये सहायता तो तुरन्त कर देते हैं पर हर बात पर जताते रहते हैं कि हमने आपकी सहायता करी है इसलिए ऐसे लोगों से मित्रता कदापि नहीं करनी चाहिए वहीं जो जो अच्छे लोग होते हैं ओ पग पग पर अपनी मनोहर पायल के आवाज जैसी बातों से मन को सुखद आनन्द देते हैं ।
एक प्रसिद्ध उक्ति है कि ---- 'यानि कानि च मित्राणि कर्तव्यानि शतानि च "
अर्थात् चाहे जिस कोटि का ,चाहे जिस श्रेणी का, चाहे ऊंचा, चाहे नीचा हमें अपने पूरे जीवन काल में सौ से अधिक मित्र बनाने चाहिए जीवन के किस क्षण किस व्यक्ति की जरूरत हमें पड़े इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता किसी ने कभी सोचा होगा कि शेर जो पूरे जंगल का राजा है और कबूतर जो आसमान में उड़ने वाला पक्षी इन्हें चूहे कि सहायता लेनी पड़ जाये जब शेर जैसा शक्तिशाली पशु शिकारी के जाल में फंसकर स्वयं को असहाय और निर्बल अनुभव करता है तब चूहे जैसा तुच्छ जीव उसकी सहायता करता है और ऐसे ही कबूतर को भी सहायता लेनी पड़ती है ।
इसी तरह हमें भी कभी कभी ऐसे मित्र की आवश्यकता पड़ती है या ऐसे मित्र से सहायता लेनी पड़ जाती है जिनसे हम कोई अपेक्षा भी नहीं रखते अथवा हम जिनको नकारा समझते हैं उनसे भी समय पड़ने पर सहायता लेनी ही पड़ती है इसलिए हमें छोटे बड़े हर प्रकार के मित्र बनाने चाहिए क्योंकि न जाने किस समय किस व्यक्ति की जरूरत हमें या उसे पड़ जाये ।
किसी ने कहा है------ जहां सूई की जरूरत होगी वहां तलवार लाने से केवल काम बिगड़ेगा बनेगा नहीं इसीलिए जहां सूई की जरूरत हो वहां सूई का ही प्रयोग करें तलवार का नहीं अत: हमें ज्यादा से ज्यादा मित्र बनाने चाहिए।
खैर दूसरे दिन जब अरुण विद्यालय पहुंचा तो जिस छात्र ने पहले अपने पास बैठाने से मना किया था उसने अपने पास बैठने को कहा तो अरुण पीछे अपने मित्र की ओर देखने लगा तो उसने भी इशारा किया कि वहीं बैठ जाओ तो अरुण बैठ गया।
 यह वही लड़का था जो कल अरुण को अपने पास बिठाने से भी मना कर दिया था किंतु कहते हैं न कि दुनिया में बुद्धिमत्ता ,धैर्य , और साहस के समक्ष सभी लोग खुद को समर्पित कर देते हैं और यहां तो सभी भोले भाले नटखट बच्चे थे।आज का दिन अरुण के लिए काफी अच्छा होने वाला था क्योंकि कल तक जो बच्चे अरुण का परिहास कर रहे थे वैं आज अरुण के इतने घनिष्ठ मित्र बन चुके थे मानों बरसों से साथ रहने वाले यार हों जैसे ही पहली घंटी लगी तो अरुण के मन में कई सारे प्रश्न उठने लगे कि गणित वाले गुरु जी आज न जाने कैसा व्यवहार करेंगे थोड़ी देर बीतने के बाद कोई नहीं आया तो सब बच्चे आपस में बातें करने लगे कि लगता है आज गणित वाले गुरु जी नहीं आये चलो अच्छा हुआ आज पढ़ना नहीं पड़ेगा बच्चों के लिए खासकर विद्यालय जाने वाले बच्चों के लिए ओ दिन स्वर्ग के जैसा होता है जिस दिन स्कूल में कोई एक अध्यापक नहीं आता बच्चे खुश हैं ही रहे थे की तभी स्कूल के हेडमास्टर जी कक्षा में आये तो सभी बच्चे खड़े हो गये तो हेडमास्टर जी ने बैठते हुये सभी बच्चों को बैठने का इशारा किया तो बच्चे बैठ गये हेडमास्टर जी बोले -----
बच्चों! दरअसल बात ये है कि आज से आपके पुराने वाले गणित के अध्यापक पढ़ाने नहीं आयेंगे क्योंकि उन्होंने ये स्कूल छोड़ दिया है ।आपके जो नये अध्यापक हैं ओ आज छुट्टी के समय आपको आधा घंटा देर तक पढ़ायेंगे और आज आप लोगों को देर से छोड़ा जायेगा इसलिए चिंता मत करो ठीक सभी बच्चों ने हामी भर दी आप लोग सोच रहे होंगे कि जब स्कूल सरकारी है तो कोई अध्यापक स्कूल ऐसे कैसे छोड़ सकता है दरअसल अरुण का विद्यालय पूर्णतय: सरकारी नहीं है यह एक सरकारी मान्यता प्राप्त सरकारी विद्यालय है ।
गणित के अध्यापक के जाने कि खुशी किसी और को भले न हुयी हो पर अरुण इस बात से मन ही मन बहुत ज्यादा खुश था , दूसरी घंटी लगी अंग्रेजी वाले अध्यापक अर्थात ओझा गुरु जी आये और पहले उन्होंने एक नया पाठ पढ़ाया उसके बाद बोले बच्चों! कल जो मैंने तुम लोगों को पढ़ाया था क्या वह याद है ? सभी बच्चों ने डरते हुये सिर हिलाकर हामी भर दी ।
गुरु जी ने अरुण सहित कुछ लड़कों को सामने बुलाया और बारी बारी से पूछना आरम्भ किया सभी बच्चे उत्तर दे रहे थे किंतु अरुण का मन घबरा रहा था क्योंकि उसे अंग्रेजी थोड़ी कम समझ आती थी गुरु जी ने एक बच्चे से प्रश्न पूछा तो अरुण को लगा मुझसे पूंछ रहे हैं इसलिए तुरंत उसने उसका जवाब दे दिया तो गुरु जी मुस्कुराये और बोले न धांध!
पर इस बार कोई बच्चा नहीं हंसा, गुर जी बोले--- आराम से बोलना जब तुम्हारी बारी आये अरुण ने भी हामी भर ली उसके बाद गुरु जी ने अरुण से भी कई प्रश्न पूंछे जिसका अरुण ने कुशलता पूर्वक उत्तर दिया फिर घंटी लग गयी तो गुरु जी चले गये अरुण और सब बच्चे आकर अपनी अपनी जगह बैठ गये।
उसके बाद हिंदी की कक्षा चली फिर संस्कृत के पाली में शुक्ला गुरु जी आये ये काफी हस मुख स्वभाव के थे किंतु आज इतने गम्भीर थे कि सभी बच्चे डर गये क्योंकि गुरु जी के हाथ में एक मोटी सी छड़ी थी ओ भी शीशम की गुरु जी बोले----- आज तुम लोगों को काम दिया जाता है कि इस किताब में दश कविताएं हैं और इनको याद करने के लिए तुम्हें दश दिन का समय दिया जाता है इसलिए दश दिन में ये सारी कविताएं तुम लोगों को याद हो जानी चाहिए वरना इसी छड़ी से बीस बीस छड़ी मारुंगा समझ में आया कि नहीं यह सुनकर सभी बच्चों की हालत ऐसे हो गयी कि काटो तो खून नहीं मानों सभी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी हो ।
गुरु जी बोले---- ठीक से पढ़ना नहीं आता हो तो जितनी बार बोलो उतनी बार पढ़ा दुंगा लेकिन सभी को याद हो जानी चाहिए बच्चों ने भी हामी भर दी , गुरु जी ने एक एक करके सारी कविताएं पढ़ा दी और पढ़ाकर चले गये विज्ञान की पाली काफी मजेदार बीती जैसे ही गुरु जी कोई प्रश्न पूछते और उसे पूरा ही करते तब तक अरुण उत्तर दे देता था जिससे बच्चे ताली बजाने लगते थे इस तरह आखिरी घंटी के बाद सभी बच्चों की छुट्टी तो हो गयी किंतु कक्षा चार के बच्चे अब भी रुके थे और बेसब्री के साथ नये गणित के अध्यापक का इंतजार कर रहे थे लेकिन जैसे आज इन बच्चों के ग्रह दशा मानों कहीं अलग ही सोये पड़े हो जैसे ही गणित के अध्यापक आते उससे पहले ही बच्चों ने ताली बजाकर उनका अभिवादन शुरू कर दिया किंतु जब मुख देखा तो बच्चों के पसीने छूटने लगे क्योंकि इनके गणित के नाये अध्यापक भी शुक्ला गुरु जी ही थे मानों आज के दिन बच्चों पर शनिसवार हों ऐसी हालत हो गयी थी।
गुरु जी बोले---- आज से मुझे तुम लोगों के कक्षा के दो विषय दिये गये हैं पहला संस्कृत और दूसरा गणित इसलिए आज से इन दोनों विषय में लापरवाही नहीं होनी चाहिए उसके बाद गुरु जी ने सभी बच्चों को भिन्न पर आधारित कुछ प्रश्न देकर बोले जो सारे प्रश्नों के उत्तर सही लिखेगा वह इस कक्षा का सबसे बुद्धिमान बच्चा माना जायेगा।
कुछ देर बाद गुरु जी सभी की उत्तर पुस्तिका देखने लगे किन्तु किसी भी बच्चे ने सभी प्रश्न ठीक से हल नहीं किये थे किंतु जब उन्होंने अरुण की पुस्तिका देखी तो काफी खुश हुये क्योंकि अरुण के सभी उत्तर सही थे ।
गुरु जी बोले केवल अरुण ने ही पूरे बच्चों में सर्वाधिक एवं सभी प्रश्न हल किये हैं यह सुनकर सभी बच्चे ताली बजाने लगे 
अचानक एक बच्चे ने कहा कि ये तो यामिनी जितना तेज है गुरु जी ने भी हामी भर दी सभी बच्चे अरुण के लिए तालियां बजा रहे थे और अरुण सोच रहा था कि ये यामिनी कौन है?..............
मेरी रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आशा करता हूं ये भाग आपको पसंद आया होगा शीघ्र ही नया भाग प्रकाशित करुंगा धन्यवाद 🙏🙏
लेखक---- अरुण कुमार शुक्ल सिद्धार्थ नगर ( यू पी)





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9 Comments

Chetna swrnkar

21-Aug-2022 01:10 PM

Very nice

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Mithi . S

20-Aug-2022 03:03 PM

Nice

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Seema Priyadarshini sahay

20-Aug-2022 03:02 PM

बहुत खूबसूरत

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